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जय राधे कृष्णा, अगर हम राधाजी की बात करे और कृष्ण का जिक्र ना हो, ये तो संभव ही नहीं है। क्योंकि राधा और कृष्ण हमेशा से एक दूसरे के पूरक रहे हैं और एक ऐसे आत्मिक प्रेम की मिसाल है जो भौतिक सुखों से बहुत परे है। यूं तो राधा कृष्ण का प्रेम अनादि काल से चला आ रहा है। पर द्वापर युग में जब भगवान नारायण ने कृष्ण रूपी अवतार लिया, तो संसार को प्रेम का सही अर्थ समझाने के लिए कृष्ण की ही अंश राधा ने यमुना के निकट रावल ग्राम में वृषभानु और कीर्ति के यहाँ राधा रूप में जन्म लिया। और जन्म के साथ ही राधा और कृष्ण की प्रेम कहानी शुरू हो जाती है। मगर दोस्तों, ऐसी क्या घटनाएं और स्थिति बन जाती है कि राधा को कृष्ण के विरह का सामना करना पड़ता है? और कृष्ण क्यों अपनी प्रिय बांसुरी को तोड़ देते हैं? इन सब सवालों के जवाब हम इस वीडियो में जानेंगे। दोस्तों, कहा जाता है कि राधा जन्म से अंधी थी और स्वर्ग लोक से यह वचन ले कर ही पृथ्वीलोक आयी थी कि जब श्रीकृष्ण की प्रथम दृष्टि उन पर पडेगी, तभी वह संपूर्ण जगत को देखेंगे। अन्यथा नहीं। तो देखा आपने कैसे शुरुआत से ही दोनों एक दूसरे से जुडे रहे हैं। बचपन से ही कृष्ण अपनी लीलाओं और बांसुरी की मधुर धुन से पूरे बरसाना वासियों का मन मोह हित करते रहते हैं। और राधा और कृष्ण तो आठ साल की उम्र से ही अपने प्रेम का आनंद लेने लगे थे। श्रीकृष्ण को अपने जीवन में राधा और बांसुरी दो ही सबसे प्रिय थे जो आपस में एक दूसरे से गहराई से जुड़े थे। जब श्रीकृष्ण बांसुरी बजाते राधा उनके पास चली आती और घंटों बांसुरी की धुन में मग्न रहती, जो उनके प्रेम को और बढ़ाता गया। वह यमुना नदी के तट पर बैठकर घंटों समय व्यतीत करते थे। पर उनका यह सुखद समय कुछ ही वर्षों का था, क्योंकि जैसे कृष्ण के मामा कंस को उनके वृंदावन में होने का पता चला, उसने तुरंत ही कृष्ण को मथुरा में युद्ध का निमंत्रण दे दिया, जिसके लिए कृष्ण को अपनी यशोदा मां और पूरे गांव के साथ राधा को भी छोड़कर जाना था।