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निर्णय की बैठक आज सूझ-बूझ ने बैठक बिठाई, निर्णय लेने की घड़ी जो आई। बैठे विकल्प भी जो साथ, रख कर अपने कई प्रस्ताव। निर्णय रहे मेरा सही, कदम ना पड़ जाए गुलाब की जगह कांटों में कहीं, सवाल रहे मेरा हर घड़ी। गलत नहीं समय और लेना, छोटा फैसला हो या हो बड़ा थोड़ा ठहराव, थोड़ी हिम्मत, थोड़ा विश्वास, को न्योता इस चुनाव में देना। जो मन की उलझनों को धैर्य से दफ़नाए, विचारों के परछाई भी जो, स्पष्टता से मिटती जाएं, निर्णय वे एक फिर साफ नजर है आए। सोच ना यह रुके यहां, दूसरे विकल्प जो आपत्ति जताये। क्या होता अगर चुनती कुछ और, कुछ सवाल बैठक में बंद हो जाए।