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मित्रों मेरा अगला उपन्यास "अनफोल्डेड" शीघ्र ही अमेज़ॉन पर आप सबके लिए उपलब्ध होगा। इस बार कहानी है दिल्ली और मुम्बई सरीखे महानगरों को पीछे छोड़ते हुए शहर लखनऊ और इसी शहर में ध्रुव तारे जैसे चमकते इंजीनियरिंग कॉलेज IET से कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग में B.Tech. किये हुए 3 युवाओं, सौष्ठव, शर्मिष्ठा, अनिकेत और इसी शहर के एमिटी यूनिवर्सिटी से फोरेंसिक साइंस में स्नातक एक और युवा लड़की संतुष्टि की। सौष्ठव और शर्मिष्ठा को अपने कोर्स कम्पलीशन के बाद लखनऊ में ही क्रमशः BSNL एवं TCS में ब्रेक मिलता है। अनिकेत कनाडा बेस्ड अपने अंकल की कंपनी में लीगल एडवाइजर हो जाता है। कंप्यूटर साइंस स्नातक और लीगल एडवाइजर, कुछ अजीब सा है। असंगत। लेकिन है तो यही। ऐसा क्यों, जवाब उपन्यास ही देगा। संतुष्टि कोर्स पूरा करने के बाद सिंगापुर बेस्ड एक मल्टीनेशनल कंपनी में बतौर रिसर्च एसोसिएट 2 वर्ष के अनुबंध पर सिंगापुर चली जाती है। इस तरह सब एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं। अपनी स्टडीज के दौरान एक-दूसरे के संपर्क में आये सौष्ठव और शर्मिष्ठा एक मेच्योर युवा की तरह कैरियर में एक अच्छा ब्रेक मिलने के बाद अपने-अपने परिवार को कन्विंस करके लव-मैरिज करके हैदराबाद में सेटल होते हैं। 2 साल बाद हैदराबाद से वापस आते हैं और लखनऊ में अपना घर बनवाकर खुशी-खुशी रहना शुरू करते हैं। यहां से कहानी में ट्विस्ट आता है और शर्मिष्ठा सौष्ठव के जीवन मे एक बेबी-बॉय छोड़कर हमेशा के लिए चली जाती है। शर्मिष्ठा का मर्डर हो जाता है और आरोप लगाया जाता है सौष्ठव पर। सौष्ठव न्यायिक हिरासत में चला जाता है जहाँ निचली अदालत काफी तर्क-वितर्क-कुतर्क के बाद बड़े ही उहापोह की स्थिति में कारण दर्शाते हुए सौष्ठव को दोषी ठहराती है। सौष्ठव का छोटा भाई इस खबर को कनाडा में रह रहे उसके दोस्त अनिकेत तक पहुचाता है। अनिकेत ये खबर सुनते ही अगली ही फ्लाइट से इंडिया आता है। और यहां से शुरू होता है सस्पेंस, थ्रिल और मर्डर मिस्ट्री का रहस्यमय रोचक विस्तार। सिंगापुर से वापस आयी फोरेंसिक एक्सपर्ट संतुष्टि की मदद से कैसे अनिकेत शर्मिष्ठा के असली कातिल तक पहुचता है? असली कातिल कौन होता है? उसने आखिर शर्मिष्ठा को या शर्मिष्ठा को ही क्यों मारा? सौष्ठव को या उसे भी क्यो नही मारा? मारने के बाद भी उसका रवैया कैसा रहा? अनिकेत आखिर किस तरह से ऐसे शातिर कातिल तक पहुचां? समाज के जिम्मेदार पदों पर बैठे हुए लोग जो आदर्श समाज का ताना-बाना बुनते हैं, उनके आचरण और परिवार के बड़े-बुजुर्ग और धीर गंभीर लोगों के जीवन मे वचन और कर्म में भेद को समाहित किये हुए, समाज की युवा पीढ़ी अपने परिजनों के प्रति किस गंभीरता से सोचती है? इन्ही सबका उत्तर मिलेगा आपको उपन्यास में। दोस्ती की परिभाषा, दायित्व, फ़र्ज, प्रेम एवं जीवन के प्रत्येक अंश एवं भाव को समाहित करता हुआ ये उपन्यास एक फ़िल्म की तरह आगे बढ़ता है और अंत मे आपको झकझोर कर रख देता है। उपन्यास आपको जीवन के कई अनछुए पहलुओं में प्रवेश करने का अवसर देगा और अंत मे काफी कुछ प्रेणादायक तथ्य छोड़कर आपसे विदा लेगा।