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उद्यमशील समाजसेवी भाव में आकण्ड में डूबे आनंद मणि त्रिपाठी का जीवन संवेदना से भरा हुआ है.ऐसी संवेदना जिसकी मौजूदा राजनीति में काफी कमी है.संवेदना मनुष्यता की आवश्यकता है और उसकी उपलब्धता हर मोर्चे पर संकट से दो चार है.संवेदना देखभाल सुरक्षा की उम्मीदों की टकटकी लगाए देख रहा समाज अपने आप में बेताब है, गरीब वंचित पिछड़ों के लिए आसान नहीं है। आनंदमणि त्रिपाठी ऐसी ही की लगाए शहरों की उम्मीद है आस हैं दरअसल आनंद मणि खुद भी एक उम्मीद है। एक ऐसी उम्मीद जो राजनीति के अंधेरों में जनमानस को भरोसा का उजाला दिखाता है.वो जो आम लोगों की ज़िंदगी में सबसे बड़ी उम्मीद है। गांव छोड़कर कर गए लोग गांव नहीं लौट.शहर में महंगी सुविधाओं और सस्ते के लोगों के बीच गांव की सादगी और भोलापन और सोंधी मिट्टी की महक बेची की जाती है.गाँव का निर्दोष भाव बेचा बहुत जाता है, लेकिन खरीदा कुछ भी नहीं जाता है सुबह की भाग दौड़ को या फिर शाम की महफ़िलें एक बार जो इसमें डूबा वह वहीँ का हो कर रह जाता है कुछ लोग जो अपवाद होते हैं, कुछ लोग आनंद मणि त्रिपाठी होते हैं.