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धीरे-धीरे उसके हाथ से सारे अधिकार छीने जाने लगे तब सुजान ने पेड का नीचे बैठकर सोचा उसेक ही घर में उसका अनादर। अभी वह अपाहिज नहीं है हाथ-पाँव थके नही है, घर का कुछ न कुछ काम वह करता ही रहता है फिर भी यह अनादार? उसीने वह घर बनाया था, सारी विभूति उसी के श्रम का फल है पर अब उस पर उसका कोई अधिकार नही। अब वह दरवाजे पर कुत्ते जैसा है, पड़ा रहता है, घरवाले जो रुखा-सूखा दे, वहीं खाकर पेट भर लिया करे। ऐसे जीवन को वह धिक्कारता है। ऐसे घर में वह रह नही सकता।