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क्या भारत की हालत भी श्रीलंका जैसी होने वाली है मैं जवाब देता हूं कि नहीं ऐसा कुछ नहीं है आप चिंता ना करें बैंक बंद होने वाले हैं क्या बैंक हमारे भी डूब जाएंगे मैं कहता हूं चिंता की बात नहीं है और यह बात जब मैं कहता हूं तो मैं जानता हूं कि जब मैं यह बात कहूंगा तो हालात और बिगड़ेंगे और जब भी सार्वजनिक मंच पर कंडीशन है। जो दशा है देश की वह देश के नागरिकों को पता होना चाहिए सरकार उसे बताएं या ना बताएं मीडिया का फर्ज है कि वह चीज बताएं जिससे सरकार छुपाए आज मैं आपको भारत की वित्तीय स्थिति का एक छोटा सा नजारा दिखाने वाला हूं झांकी दिखाने वाला हूं इससे आपको काफी हद तक यह समझ में आएगा और वह आज हम इस पर पहुंचेंगे नतीजे पर कि देश की दशा क्या बना दी गई है और क्यों बनी है इसका भी एक छोटा सा नमूना आपको समझ में आ जाएगा। मोदी की लगातार मोदी जी उनकी पार्टी और बहुत सारे लोग एक विषय पर टिप्पणी कर रहे हो कि मुफ्त कोई बंद होनी चाहिए सरकारों को अपने उसको बंद करनी चाहिए मुझे क्यों कह रहे यह प्रेरणा उनको कहां से आ रही है क्या उनको कहीं से सपने में आता है क्योंकि जब वह यह बात कहते हैं तो सैकड़ों हजारों लोग खुद उनकी पार्टी के मुंह पर वह पुरानी सूचनाएं जानकारियां भाषण और फैक्स मार देते हैं जिसमें उन्होंने अंधाधुंध के बीज बांटे हैं और वह यह भी कहते हैं कि आपने बहुत सारे कर्ज माफ करवा दिया यह करा दिया वह करा दिया इसलिए आप किस मुंह से यह बात करें। यह सब हम देख रहे होंगे लेकिन समझने की जरूरत है कि अचानक सरकार को यह कहां से दिमाग में आ गया अब तो हालत यह है कि जो घोषणा पत्र बनने उन घोषणापत्र में भी बीजेपी अब उन योजनाओं का नाम नहीं ले रही जिसमें लोगों को मुफ्त में कुछ दिया जाना है। लेकिन क्या मुफ्तखोरी ही इसके लिए जिम्मेदार है क्या यह सारा दोष मुफ्तखोरी के सिर पर डाला जा रहा है अभी तक इस पर राजनीति तो हुई हैं आर्थिक तौर पर जानने समझने की कोशिश नहीं की है क्यों कौन सी वजह है वह कौन सा मकड़जाल है जिसमें मोदी सरकार छटपटा रही है पर अपना दोष मुफ्त खोरी के सर पर डाल देना चाहती। मुफ्तखोरी की तरह ही एक बड़ी और बेकार बीमारी है जिसको आप कहते हैं तो कर्जखोरी अगर आप औकात से ज्यादा भारत की सरकार की बहुत बड़ी औकात है लेकिन उसके बाद भी अगर आप अपनी औकात से ज्यादा कर्ज लेंगे तो आपको घर का छोटा छोटा जरूरी खर्चा भी ना बड़ा दिखाई देगा आज भारत उसी दौर में पहुंच गया है अलग-अलग समय पर अलग-अलग मौकों पर सरकार के अंधाधुंध कर्जों का मैं जिक्र कर चुका हूं गुजरात का यह मॉडल है गुजरात में भी काम में अंधाधुंध खर्च लेकर जी लिए जिनको आज तक वहां कि राज्य सरकार किसी तरह छोड़ दी है और केंद्र सरकार में भी बना दो हाईवे बना दो मुझे उद्घाटन करना है देश के पास पैसे नहीं हैं टैक्स नहीं आ रहा है जितनी जी डी पी है उससे जितना टैक्स आएगा उसी से तो विकास करेंगे आप आपने हमें चाय को कर्ज में धकेल दिया लेकिन यह सब बातें उदाहरणों की है लेकिन जो ओवरऑल अर्थव्यवस्था का मूल्यांकन करें थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा 15 अक्टूबर को पिछले साल आई एम एफ़ की समीक्षा रिपोर्ट आई थी जो बाकायदा उन्होंने भारत सरकार को भेजें और एक अब एक बात देखोगे आईएमएफ की जो भी रिपोर्ट बनाती हैं या वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट आती हैं यह रिपोर्ट को अपने अलग से जासूसी से नहीं बनाते हैं जो हालात हैं वो सरकार लिखित में बताती है उसी के आधार पर समीक्षा करके वह रिपोर्ट बनाते हैं और अगर कुछ छुपाती है तो वह पकड़ लेते क्योंकि ऑडिटर होते हैं अब सवाल पूछते हैं कि रिपोर्ट 15 अक्टूबर को आई है समीक्षा रिपोर्ट मुझे बता रही है भारत का कर्ज करीब-करीब पिछले साल अक्टूबर में ही 90 परसेंट से ऊपर चला गया था जीडीपी के 90% से ऊपर 90.6% ऐसा कुछ था और जानकारों का कहना है कि यह 90 परसेंट वह है जो सरकार ने लिया और अगर इस कर्ज में जो हमारे देश की कंपनियां हैं उनको भी जोड़ लिया जाए पब्लिक सेक्टर कंपनी हिंदुस्तान पैट्रोलियम भारत पैट्रोलियम हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड, रेलवे जिनको सरकार जल्दी से जल्दी प्राइवेटाइज करने जा रही है।