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रहीम के दोहे प्रस्तुत पाठ में रहीम जी के ग्यारा दोहे दिए गए हैं जो हमारे जीवन की किसी न किसी परिस्तिथि से जुड़े हुए हैं। रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय। टूटे से फिर न मिले, मिले गाँठ परि जाय।। इस दोहे में रहीम जी कहते हैं कि प्रेम का बंधन धागे के समान होता है, जिसे कभी भी झटके से नहीं तोड़ना चाहिए क्योंकि धागा जब एक बार टूट जाता है तो उसे फिर जोड़ा नहीं जा सकता। इसलिए हमें अपने संबंधों का ध्यान रखना चाहिए। संबंधों में मधुरता रेहनी चाहिए, कटु वचनों विषैली मानसिकता नकारात्मक सोच से स्वयं को बचाना चाहिए। एक दूसरे के लिए मान-सम्मान और एक दूसरे के साथ सहयोग संबंधों को मधुर बनाता है। रहीम जी कहते हैं रिश्ते निभाना बहुत कठिन है और इन्हें तोड़ना बहुत सरल है। परन्तु उसी रिश्ते को जब दुबारा जोड़ा जाता है तो उसमे पहले जैसी मधुरता और सरलता नहीं रहती। व्यक्ति के मन में हमेशा के लिए एक गाँठ रह जाती है। इसलिए प्रेम के बंधनों को कभी भी एक ही झटके में स्वयं से दूर न करें। एक दूसरे को समय दें। समय बहुत बलवान है और व्यक्ति को एक दूसरे के समीप लाता है। वर्त्तमान परिवेश में व्यक्ति के पास अपने लिए समय का बहुत अभाव है ऐसी परिस्तिथियों में इस दोहे कि प्रासंगिकता बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह बतलाता है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और प्रेम भावना सहयोग प्राणियों के लिए अति आवश्यक है। धन्यवाद! प्रस्तुति श्रेया मुदगिल कक्षा 9 बी